करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और समृद्धि के लिए रखती हैं। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं।
करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha)
करवा चौथ व्रत की कथा एक ऐसी पौराणिक कथा है, जो न केवल भारतीय संस्कृति में निहित है, बल्कि इसे व्रत रखने वाली महिलाओं के समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी माना जाता है। यह कथा देवी-देवताओं की कृपा और एक आदर्श नारी के रूप में नारी शक्ति को प्रदर्शित करती है।
करवा चौथ की कथा का प्रारंभ
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक ब्राह्मण परिवार में सात भाई और एक बहन थी, जिसका नाम करवा था। करवा अपने भाइयों की लाड़ली थी और वे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। जब करवा का विवाह हुआ, तो वह अपने पति के साथ सुखी जीवन व्यतीत करने लगी।
पहले करवा चौथ की घटना
एक बार करवा चौथ के दिन करवा ने व्रत रखा। उसने सूर्योदय से पहले सरगी खाई और दिनभर निर्जल रहकर व्रत का पालन किया। पूरे दिन उसने माता पार्वती और भगवान शिव का ध्यान किया।
शाम होते-होते करवा को बहुत प्यास लगने लगी, लेकिन उसने अपनी श्रद्धा और भक्ति से व्रत का पालन जारी रखा।
भाइयों की चालाकी
शाम को जब करवा के भाई अपनी बहन को इतनी थकी हुई और प्यास से व्याकुल देखकर विचलित हुए, तो उन्होंने उसे व्रत तुड़वाने की योजना बनाई। भाइयों ने एक पेड़ पर दीपक जलाया और करवा से कहा कि चंद्रमा निकल आया है।
करवा ने भाइयों की बातों पर विश्वास किया और दीपक को चंद्रमा समझकर अर्घ्य देकर व्रत खोल लिया।
करवा को मिली सजा
करवा का व्रत अधूरा रह गया, और इसके परिणामस्वरूप उसका पति बीमार पड़ गया। करवा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने माता पार्वती और भगवान शिव से क्षमा याचना की।
माता पार्वती की कृपा
करवा की सच्ची भक्ति और पश्चाताप से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उसे अगले वर्ष पूरी श्रद्धा और विधि से करवा चौथ व्रत करने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद करवा ने विधिपूर्वक व्रत किया, और उसके पति को स्वास्थ्य लाभ मिला।
कथा का महत्व
यह कथा सिखाती है कि करवा चौथ व्रत में केवल शारीरिक उपवास ही नहीं, बल्कि मन की सच्ची श्रद्धा और भक्ति का होना आवश्यक है। करवा की तरह यदि सच्चे मन से यह व्रत किया जाए, तो माता पार्वती और भगवान शिव की कृपा से पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
कथा से जुड़ी मान्यताएं
भाई-बहन का रिश्ता:
यह कथा भाइयों और बहनों के अटूट प्रेम का भी उदाहरण है।
करवा का प्रतीक:
करवा चौथ के दिन विशेष रूप से मिट्टी का करवा पूजा में उपयोग होता है, जो करवा के समर्पण का प्रतीक है।
पति की दीर्घायु का आशीर्वाद:
कथा से यह सिद्ध होता है कि यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास को गहरा करता है।
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करवा चौथ व्रत की पूजा विधि (Karva Chauth Vrat Puja Vidhi)
करवा चौथ व्रत को विधिपूर्वक करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
- सामग्री तैयार करें:
- पूजा थाली, करवा, जल का पात्र, सिंदूर, दीपक, मिठाई और 16 श्रृंगार की सामग्री।
- सुबह व्रत का संकल्प लें:
- सूर्योदय से पहले सरगी खाएं और व्रत का संकल्प लें।
- दिन भर उपवास करें:
- निर्जला व्रत रखें और पूरे दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का ध्यान करें।
- संध्या पूजा:
- पूजा स्थल पर करवा चौथ कथा सुनें या पढ़ें।
- दीप जलाएं और चंद्रमा के दर्शन के बाद उन्हें अर्घ्य दें।
- व्रत तोड़ें:
- चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलें।
करवा चौथ व्रत का महत्व (Karva Chauth Vrat Importance)
करवा चौथ व्रत पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह व्रत न केवल वैवाहिक जीवन को सुदृढ़ करता है बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और अनुशासन को भी बढ़ावा देता है।
करवा चौथ व्रत के फायदे (Karva Chauth Vrat Benefits)
- आध्यात्मिक लाभ: भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।
- शारीरिक लाभ: व्रत से शरीर की शुद्धि होती है।
- भावनात्मक लाभ: पति-पत्नी के संबंधों में विश्वास और प्रेम बढ़ता है।
करवा चौथ व्रत की आरती (Karva Chauth Vrat Ki Aarti)
जय करवा माता आरती
जय करवा माता, जय करवा माता।
तुमको निशदिन ध्यावत, हर व्रत करने वाली माता॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
सुख सम्पत्ति घर आती, दुःख संकट मिट जाता।
जो धरती पर तेरी महिमा गाता, वह भवसागर तर जाता॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
तुम हो अन्नपूर्णा माता, सबके जीवन की दाता।
भक्तों का सहारा बनती, उनकी हर मनोकामना पूरी करती॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
शिव-गौरी के रूप में, तुम आशीष लुटाती।
हर घर को समृद्ध बनाती, संकट से बचाती॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
व्रत और श्रद्धा से जो तुझको भजते।
उनके घर में लक्ष्मी स्वयं निवास करती॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
चतुर्थी का यह पावन त्यौहार।
लाता है दांपत्य जीवन में खुशियों की बहार॥
जय करवा माता, जय करवा माता।
आरती भगवान शिव और पार्वती जी की

ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
ब्रम्हा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
भस्म लेपित अंग, गंग बहती शीतल।
शिवलिंग पर होती, सदा भक्तों की पूजा॥
ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
नंदी गाते स्तुति, देवों का वंदन।
राक्षसों का नाश कर, करते हो कल्याण॥
ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
शिव-गौरी का पूजन, है सबसे उत्तम।
हर मनोकामना पूर्ण हो, मिलता है वरदान॥
ओम जय शिव ओंकारा, जय शिव ओंकारा।
आरती मां गौरी की (करवा चौथ के विशेष अवसर पर)

जय गौरी माता, जय गौरी माता।
शिव संग विराजे, सब जग की त्राता॥
जय गौरी माता, जय गौरी माता।
हर संकट को हरने वाली।
भक्तों की आशा को पूर्ण करने वाली॥
जय गौरी माता, जय गौरी माता।
करवा चौथ के व्रत में, तुम ही पूजी जाती।
सौभाग्य का वरदान देकर, सबकी मन्नत पूरी करती॥
जय गौरी माता, जय गौरी माता।
जो तुझको सच्चे मन से ध्याए।
सुख, शांति और सौभाग्य पाए॥
जय गौरी माता, जय गौरी माता।
यह आरती करवा चौथ के पूजन के दौरान गाई जाती है। इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से गाकर माता करवा और भगवान शिव-पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करें। Karva Chauth aarti PDF डाउनलोड करने के लिए नीचे क्लिक करें।
निष्कर्ष
करवा चौथ व्रत भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यदि आप Karva Chauth vrat katha pdf या अन्य सामग्री डाउनलोड करना चाहते हैं, तो हमारी वेबसाइट pehlwankikatha.in पर विजिट करें।
“करवा चौथ व्रत का पालन करें और माता पार्वती व भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।”